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    लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बडे़ मंगल का आयोजन बड़े पैमाने पर होता है। लखनऊ में अलग अलग मंदिरों और जगहों पर इसका आयोजन होता है। वहीं इस दौरान धार्मिक आस्था देखने को मिलती है। वैसे तो अलीगंज स्थित पुराने हनुमान मंदिर के कई मिथक हैं जिनकी चर्चा भी खूब है लेकिन क्या आप जानते हैं कि जेठ माह में भंडारे की शुरुआत कैसे और क्यों हुई?  बता दें कि गलियों में बसा पुराना हनुमान मंदिर अन्य मंदिरों से अलग है। मंदिर के गुंबद के ऊपर स्थित चाँद तारा अवध की गंगा-जमुनी तहज़ीब और सदियों से चली आ रही संस्कृति का सच्चा प्रतीक है। 


    मन्नत पूरी होने पर करवाया था भंडारा

    मंदिर परिसर में रहकर इस पूजा और इसकी देखरेख करने वाले शिवाकांत मिश्रा ने बताया कि यह मंदिर 170 साल से अधिक पुराना है। इसका जीर्णोधार नवाब वाजिद अली शाह की बेगम अलियाह ने कराया था। दरअसल, उनके कोई औलाद नहीं थी। जिसके चलते उन्होंने मन्नत मानी थी जिसे पूरा होने पर यहां पर जेठ के मंगल पर भंडारा करवाया था। तभी से यह देश और प्रदेश के अलग-अलग जनपदों में चारों ओर धूमधाम से मनाया जा रहा है। वहीं इसे बड़े मंगल के रूप में जाना जाता है। 


    इसी जगह पर सीता माता ने किया था विश्राम

    शिवाकांत बताते हैं कि जब सीता जी को वनवास के लिए भेजा गया था तो आज जिस स्थान पर मंदिर मौजूद है, वही स्थान था जहां उन्होंने विश्राम किया था और भगवान हनुमान उनकी सुरक्षा के लिए उपस्थित थे। मंदिर परिसर के बाहर प्रसाद विक्रेताओं ने बताया कि उनके पूर्वज बताते थे कि नवाब वाजिद अली शाह और उनकी बेगम की हनुमान जी के प्रति ऐसी श्रद्धा थी कि इस मंदिर में बंदरों को चना भी खिलाया जाता था। खास बात यह है कि वाजिद अली शाह बजरंगबली के प्रति इतनी अधिक श्रद्धा रखते थे कि उनके नवाबी काल में बंदरों की हत्या पर भी प्रतिबंध था।


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