लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ को नवाबों के शहर के नाम से जाना जाता है क्योंकि यहां का इतिहास इसको सबसे अलग बनाता है। रहन-सहन, खाना-पानी, तौर- तरीके, भाषा, इमारतें-पार्क, पहनावे में राजसी जीवन की झलक दिखाई देती है। शायद यही वजह भी है कि इसे अदब और नवाबों का शहर कहा जाता है। वहीं यहां बनी इमारतें भी सुंदरता बढ़ाने का काम करती है। इन सब के अलावा यहां का एक स्कूल सभी को अपनी तरफ आकर्षित करता है। यह स्कूल इतना बड़ा और खूबसूरत है कि इसे देखकर हर कोई मुरीद हो जाता है। क्योंकि इसे फ्रांस में बनी इमारतों की तर्ज पर बनवाया गया।
700 एकड़ में फैला है स्कूल
दरअसल, हम बात कर रहे हैं लखनऊ के ला मार्टीनियर कॉलेज की, जिसका नाम देश के प्राचीन शिक्षण संस्थानों में शुमार है। यह स्कूल 700 एकड़ में बना है वहीं यह दुनिया का एकमात्र स्कूल है जिसे शाही युद्ध सम्मान से नवाजा गया है। बता दें कि 1845 में स्थापित ला मार्टिनियर कॉलेज की स्थापना मेजर जनरल क्लाउड मार्टिन की वसीयत के अनुसार की गई थी। वहीं एक समय ऐसा भी था कि यहां पढ़ने वाले बच्चों ने ब्रिटिश सैनिकों की तरफ से भारतीय सैनिकों के खिलाफ मोर्चा खोला था। वहीं इस स्कूल में ग़दर एक प्रेमकथा, अनवर, रक्स, ऑलवेज कभी कभी और शतरंज के खिलाड़ी जैसी फिल्मों की शूटिंग भी हो चुकी है।
ल्योन, कलकत्ता और लखनऊ में है ला मार्टीनियर स्कूल
1735 में फ्रांस के ल्योंन में जन्में क्लाउड मार्टिन फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी में फौजी थे। लेकिन नवाब आसफुद्दौला के कहने पर लखनऊ आ गए थे और इनके यहां नौकरी कर ली। बेशुमार दौलत कमाने के बाद उनकी ख्वाहिश थी कि एक स्कूल खोला जाए। जहां गरीब बच्चों को दाखिला दिया जाए और किसी विशेष जाति या धर्म के बच्चों को दाखिला न दिया जाए। इसलिए उनकी वसीयत के तहत, फ्रांस के ल्योन, कलकत्ता और लखनऊ में स्कूलों की स्थापना के लिए रूपए आवंटित किए गए। अपनी वसीयत में क्लाउड मार्टिन ने यह भी कहा था कि लकपेरा या कॉन्स्टेंटिया हाउस में मेरा घर, घर से संबंधित सभी जमीन और परिसर और इसके चारों ओर की सभी जमीन, किसी को भी बेचा नहीं जाएगा या इससे अलग नहीं किया जाएगा।
इमारत में हैं कई सुरंगे
इतिहासकार डॉ. रवि भट्ट ने बताया कि ला मार्टीनियर की बनावट की खासियत है कि यह मौसम की मार से बेअसर है। यहां बने खोखले टावर एयरकंडीशनर का काम करते हैं। जो गर्मी में तो तरावट देते हैं, लेकिन ठंडक में गर्मी का अहसास करवाते हैं। इस इमारत में कई सुरंगे हैं, जो शहर के अलग-अलग इलाकों में खुलती है। कोई इसे खरीदे ना इसलिए मरने के बाद क्लाउड मार्टिन यहीं तहखाने में दफना दिए गए थे। उनका मकबरा यहां आज भी है। इतिहासकार मानते है कि उनके मकबरे से निकलने वाले खुफिया रास्ते लाट की तरफ जाते हैं। वहीं 1857 के गदर के बाद स्कूल में केवल यूरोपियन बच्चों को ही दाखिला दिया जाता था।
ला मार्टिनियर 1857 की घटना से हुआ था प्रभावित
ला मार्टिनियर कॉलेज 1857 की घटनाओं से बहुत प्रभावित हुआ था। सर हेनरी लॉरेंस के आदेश पर 13 जून, 1857 को कॉलेज को रेजीडेंसी में खाली कर दिया गया था, हालांकि प्रिंसिपल, जॉर्ज शिलिंग ने स्कूल की इमारतों को मजबूत किया था और प्रावधानों का भंडारण किया था। इसके पीछे का उद्देश्य सिर्फ ला मार्टिनियर की रक्षा करना था। 1857 की हलचल भरी घटनाओं के दौरान ला मार्टिनियर के प्रिंसिपल, मास्टर्स और लड़कों ने भूमिका निभाई, जो शायद दुनिया के इतिहास में अद्वितीय है। उन्होंने रेजीडेंसी की दक्षिणी परिधि के एक अत्यंत उजागर हिस्से की रक्षा की, पैदल सेना और तोपखाने के हमलों का सामना किया और खनन कार्यों के अधीन थे। बड़ी कठिनाई का सामना करते हुए, उन्होंने करीब 5 महीनों तक द मार्टिनियर पोस्ट की कुशलतापूर्वक और सफलतापूर्वक रक्षा की। इस दौरान बच्चों की पढ़ाई भी जारी रही।
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