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    रजत भट्ट, गोरखपुर: उत्तर प्रदेश के पुर्वी मे 3321 वर्ग किलो मीटर में बसे गोरखपुर जिले में आस्था और संस्कृति के परमंपरा कि पुरानी खुशबू आज भी आति है। लेकिन वहीं करीब 8 बार इस गोरखपुर का नाम बदलने के बाद भी इस तपोभूमि की पहचान उसी तरह बरकरार है। गुरु गोरक्षनाथ की तपोस्थली तो विश्व को गीता के ज्ञान का पाठ कराने वाले गीता प्रेस और गोरक्षनाथ मंदिर जैसी नाथ पंथ की आध्यात्मिक पीठ भी इसी गोरखपुर की पहचान है। तो वहीं पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और बंधु सिंह के बलिदान की खुशबू भी गोरखपुर की मिट्टी से आती है। संत कबीर के देहत्याग की गवाह भी यही धरती है।


    गोरखपुर के धार्मिक स्थानों का महत्व

    गोरखपुर के धार्मिक स्थानों की बात करने पर सबसे पहले नाम गोरखनाथ मठ का आता है। जो नाथ पंथ संप्रदाय की एक परंपरा का पहचान रहा है। नाथ परंपरा गुरु मत्स्येंद्रनाथ नाथ द्वारा स्थापित की गई थी। गोरखनाथ मंदिर उसी स्थान पर स्थित है जहां वह तपस्या करते थे और उनको श्रद्धांजलि समर्पित करते हुए यह मंदिर की स्थापना की गई। मंदिर का नाम गुरु गोरखनाथ के नाम पर रखा गया। जिन्होंने अपनी तपस्या का ज्ञान मत्स्येंद्रनाथ से लिया था जो नाथ संप्रदाय के संस्थापक थे।


    विश्व में प्रचलित है गीता का ज्ञान

    गोरखपुर की भूमि से गीता के ज्ञान का भी लोगों को एहसास कराया जाता है। भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को रण युद्ध में गीता के ज्ञान को सुनाया जरूर था। लेकिन 23 अप्रैल 1923 को गोरखपुर में प्रेस की स्थापना करके उसका नाम गीता प्रेस रखा गया। आज गोरखपुर की तपोस्थली से गीता प्रेस करीब 15 भाषाओं में गीता का प्रकाशन करती है। जिसे देश-विदेश पूरे विश्व में पढ़ा जाता है और गोरखपुर की तपोस्थली को याद किया जाता है। साथी गोरखपुर के गीता वाटिका की भक्ति  श्री राधा कृष्ण जी को याद करता है। अलौकिक राष्ट्रीय केंद्र के रूप में इसकी पहचान होती है। कभी कोलकाता के सेठ ताराचंद घनश्यामदास की थी यह जमीन लेकिन इसकी स्थापना संत भाई जी हनुमान प्रसाद पोद्दार ने की 30 मई 1933 को गीता वाटिका के लिए इस जमीन को खरीदा गया था।


    आजादी की खातिर गोरखपुर से बजा था बिगुल

    9 अगस्त 1925 की रात चंद्र शेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी या और रोशन सिंह समेत तमाम क्रांतिकारियों ने काकोरी कांड को अंजाम दे दिया था। तभी "सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में" कहने वाले राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर के कोठरी संख्या 7 में रखा गया था। उस समय इसे तन्हाई बैरक कहा जाता था। 19 दिसंबर 1927 को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर की जेल की कोठरी में फांसी के फंदे से लटका दिया गया था।


    तरकुलहा देवी मंदिर भी है अनोखा 

    वहीं गोरखपुर के तरकुलहा देवी की मंदिर की गाथा भी कुछ अनोखी है। अंग्रेजो के खिलाफ बिगुल फूंकने वाले बंधु सिंह गोरिला लड़ाई लड़के अंग्रेजों को मारते और उनकी बलि माता को चढ़ा देते थे। लेकिन जब अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ा तो 6 बार उन्हें फांसी देने पर भी उन्हें फांसी नहीं लगती थी। फिर सातवीं बार बंधु सिंह ने माता से खुद फांसी पर चढ़ने की इजाजत मांगी जिसके बाद उन्हें सातवीं बार फांसी पर चढ़ा दिया गया। आज भी तरकुलहा माता के मंदिर पर बलि देने की परंपरा जारी है। लोग वहां अब बकरे की बलि देते और प्रसाद के रूप में उसे वहां पका कर खाते हैं।


    1922 में हुआ था चौरी- चौरा कांड 

    जब पूरे भारत में महात्मा गांधी ने अंग्रेजो के विदेशी कपड़ों के खिलाफ असहयोग आंदोलन चला रहे थे। तो पूरे भारत के चौराहों पर विदेशी कपड़ों को जलाया जा रहा था। इसी बीच गोरखपुर के चौरी- चौरा में 4 फरवरी 1922 को विदेशी कपड़ों के बहिष्कार के साथ उन्हें जलाया जा रहा था। तभी अंग्रेजी अफसरों ने वहां की भीड़ पर गोली चलवाई जिसमें 11 क्रांतिकारी की मृत्यु हुई और 50 से अधिक क्रांतिकारी घायल हो गए। जिससे भीड़ आक्रोशित हो गई और पुलिस वालों पर पत्थर फेंकना शुरू किया पुलिस वाले भागकर थाने में चले गए। बौखलाई भीड़ ने पूरे थाने को घेर कर उसे जला दिया। जिसमें 21 पुलिसवाले जिंदा जल के मर गए तभी महात्मा गांधी ने 12 फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन को बीच में ही रोक दिया और 5 दिन के उपवास पर चले गए।


    गोरखपुर का टूरिस्ट प्लेस

    गोरखपुर में जब भी घूमने के लिए यहां की टूरिज्म को विजिट करने के लिए लोग आते हैं। पहले गोरखपुर के सबसे लंबे प्लेटफार्म को देखते हैं जो विश्व में अपनी अलग पहचान बनाए हैं। साथ गोरखपुर का रामगढ़ ताल जो 1700 एकड़ में फैला इस पर प्रकृति की अनुपम भेंट है। अब यह रामगढ़ ताल पूर्वांचल का मरीन ड्राइव बन चुका है दूरदराज से पर्यटक इस का आनंद उठाने आते हैं। साथ ही पर्यटकों के लिए धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से गोरखनाथ मंदिर पर्यटक का प्रमुख केंद्र है। हिंदू धार्मिक ग्रंथ और पुस्तकों का प्रकाशित करना दुनिया का प्रमुख केंद्र गीता प्रेस भी मौजूद है।

    इसके साथ कुसमी घना जंगल है यह गोरखपुर रेलवे स्टेशन से 9 किलोमीटर दूरी पर स्थित है इस घने जंगल के बीच प्रसिद्ध बुढ़िया माई मंदिर विख्यात है। दूरदराज के पर्यटक इसका भी आनंद लेने पहुंचते हैं। वहीं 1987 में विविध तत्वों के संरक्षण के लिए राजकीय बौद्ध संग्रहालय पर्यटकों के लिए खास आकर्षण का केंद्र है। यहां पाषाण काल से लेकर मध्यकाल तक की पुरातात्विक वस्तुएं भी मौजूद है।


    अब तक 8 बार बदला गया गोरखपुर का नाम

    : छठी शताब्दी पूर्व इसका नाम-रामग्राम


    : तीसरी शताब्दी पूर्व पिप्पलीवन


    : नौवीं शताब्दी में गोरखपुर


    : 13वीं 14वीं शताब्दी के मध्य सूब-ए-सर्किया


    : 14 वीं शताब्दी में अख्तरनगर 


    : 17 वी शताब्दी में गोरखपुर सरकार


    : 17 वी शताब्दी में ही औरंगजेब के बेटे के का नाम पड़ा मोअज्जमाबाद


    : 1801 से लेकर अब तक गोरखपुर है।


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