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    वाराणसी: जीआई को लेकर काशी ने अपना दबदबा कायम कर दिया है। खास बनारसी लंगड़ा आम, बनारसी पान को जीआई क्लब में एंट्री मिल गई है। इसका अर्थ है कि अब उसकी पहचान उसके ओरिजिन से होगी। आपको बता दें कि रामनगर के भंटा (बैंगन) और चंदौसी की आदमचीनी चावल को जीआई रजिस्ट्री चेन्नई ने टैग दिया है। 


    संस्कृति का हिस्सा रहा है पान का पत्ता, पुराणों में भी मिलता है जिक्र

    आपको बता दें कि जीआई टैग की मान्यता मिलने के बाद इन चीजों के उत्पादन और व्यापार से जुड़े हुए लोगों को एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल हुई है। वहीं बनारस के पान को जीआई टैग मिलने से दुनियाभर के लोगों को खुशी मिली है। ज्ञात हो कि बनारस के पान का जिक्र धार्मिक-पौराणिक कथाओं में भी मिलता है। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार इस पान का पहला बीज मां पार्वती और भगवान भोले शंकर ने खुद ही पहाड़ पर लगाया था। कहा जाता है कि भगवान शिव को पान बहुत ही प्रिय है। शिव की नगरी में बिना पान के पूजा और खाना कुछ भी नहीं होता। यही नहीं घर में भी पूजन आदि के दौरान पान के पत्तों को जरूरी माना जाता है। पुराणों में भी पान के पत्तों को सदियों से हमारी संस्कृति का हिस्सा माना गया है। मौजूदा वक्त में पान को जिस रूप में खाया जाता है उसकी शुरुआत मुगलों ने की थी। मुगलों के द्वारा ही पान के पत्ते पर कत्था, चूना और अन्य चीजों को डालकर माउथ फ्रेशनर बनाया गया था। 


    जानिए क्या है बनारसी पान में खास 

    बनारसी पान बाकि पान की तरह ही होता है। इस पान के पत्तों में कत्था, चूना, सुपारी आदि चीजों को डालकर इस्तेमाल किया जाता है। बनारस में लोगों को पान खिलाना बिजनेस ही नहीं पहचान भी है। स्वाद को अलग और यूनिक रखने के लिए उसमें बराबर सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है। पान में भिगोकर सुपारी इस्तेमाल करने से उसका कसैलापन भी दूर हो जाता है। इसी के साथ बनारस के पान को अलग बनाने के लिए तमाम तरह के बदलाव किए गए हैं। 



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