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    केरल स्टोरी फ़िल्म (The Kerala Story) का विवाद लगातार गहराता जा रहा है। एक ओर जहाँ भाजपा शासित प्रदेशों में इसका समर्थन किया जा रहा है तो वहीँ दूसरी तरफ विपक्ष इसपर सवाल खड़े कर रहा है। यही नहीं केरल हाईकोर्ट ने इसपर ज़्यादा ध्यान न देते हुए सुनवाई करने से इनकार कर दिया तो अब मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुँच गया है। हालाँकि, देश में यह कोई पहली फ़िल्म नहीं है कि जिसका विरोध किया जा रहा है। इससे पहले भी तमाम फ़िल्में रिलीज़ हुई जिनका खूब विरोध किया है लेकिन इसका कुछ ख़ास असर देखने को नहीं मिला। बल्कि ऐसे मुद्दे कुछ दिनों तक सुर्ख़ियों में रहने के बाद शांत हो जाते है।


    जाति, धर्म, राजनीति से लेकर हटकर 'द सरकार' की टीम ने अधिवक्ता दीपक सिंह से बातचीत कर इस मामले को गंभीरता से समझने की कोशिश की। इस दौरान उन्होंने कहा कि फिल्म के जरिए हर कोई अपने अनुसार फायदा तलाशने की कोशिश में जुटा है। कोई इसे राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल कर रहा है कोई इसके जरिए बड़ा सन्देश देने के प्रयास में है लेकिन इस देश की असल समस्याओं पर बात करने के लिए कोई तैयार नहीं है। देश में बेहतर शिक्षा, रोजगार, महंगाई, स्वास्थ्य जैसे गंभीर विषयों पर कोई ध्यान नहीं देना चाहता है।


    वहीं जाति, धर्म, राजनीति से लेकर फ़िल्म निर्माताओं तक जिसको जोभी मौक़ा मिला उसने उसमें अपना फ़ायदा तलाशने का काम किया। बता दें कि द केरल स्टोरी में दिखाया गया है की ईसाई, हिंदू, सिख इत्यादि अलग-अलग धर्मों की युवतियों को मुस्लिम समाज के युवकों द्वारा अपने प्रेम जाल में फसा कर उनका धर्मांतरण कराया जाता है और उसके बाद इनको सीरिया, ISIS, अलकायदा जैसे आतंकी संगठन में भेजकर इनको टूल की तरह इस्तेमाल किया जाता है। शायद यही वजह है कि राजनीतिक पार्टियों को इसमें आपदा में अवसर जैसी व्यवस्था तलाशने का काम किया है। यही नहीं देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस फिल्म के समर्थन में यह बात कही की किस तरह अलग-अलग धर्म की युवतियों जबरन धर्मपरिवर्तन करवाकर उनको आतंकी संगठन में उनका दुरुपयोग किया जा रहा है। 


    अधिवक्ता दीपक कहते हैं कि प्रधानमंत्री ने देश की बेटियों को जागरूक करने एवं उनके हित में इस फिल्म के पक्ष में कहा है। वहीँ देश की राजधानी दिल्ली के जंतर-मंतर में बैठी देश की पहलवान बेटियों का दर्द और समस्या प्रधानमंत्री को नही दिखती। मगर इतने पड़े पद पर बैठे प्रधानमंत्री एक फिल्म का प्रचार करने से नही चूक रहे हम मानते है इस फिल्म की कहानी सही भी हो सकती है और कुछ हद तक यह सही भी है वास्तव में ऐसी एक नही अनेक घटनाएं भी घटित हुई होंगी। मगर आज 21वी सद्दी के इस आधुनिक युग में हमारे समाज के युवा कितना अपने भविष्य के बारे में सोच रहे है और कितना अपने दैनिक जीवन की भागदौड़ में उलझे है की वास्तव में व्यक्ति किसी अन्य को तो छोड़िए स्वयं से भी नही मिल पा रह है की उसे क्या करना है कैसे करना है।


    विगत कुछ वर्षों से हमारे देश में हिंदू-मुस्लिम भाईचारा कम होता धरातल पर नज़र आ रहा है, जबकि यह देश किसी एक धर्म का नही सेकुलर है, 42वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 1976 के संशोधन के तहत भारतीय संविधान में तीन नए शब्द 'समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष एवं अखंडता' जोड़े गए। यह कट्टरता है जो की राजनीतिक -धार्मिक अतिवाद ‘कट्टरता’ का स्वरूप है। जोकि धर्म की राजनीतिक व्याख्या और हिंसक माध्यमों से धार्मिक पहचान से जुड़ा हुआ है, क्योंकि इससे प्रभावित लोग यह मानते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष, विदेश नीति और सामाजिक बहस आदि के कारण उनकी धार्मिक पहचान खतरे में है।


    इस फिल्म के माध्यम से एक विशेष अल्पसंख्यक धर्म को चिन्हित  कर सम्पूर्ण भारत देश की प्रजा में उस धर्म के प्रति हीन भावना पैदा किए जाने का प्रयास किया जा रहा है जो की भारत की एकता अखंडता और बंधुता के लिए घातक है, जिससे कारण अपने देश में भाईचारे की भावना समाप्त होती नज़र आ रही है। जबकि हमारे संविधान का अनुच्छेद 51A मौलिक कर्तव्य कहता है की भारत की संप्रभुता, एकता एवं अखंडता को अक्षुण्ण बनाए रखने तथा उसकी रक्षा करना देश की रक्षा करना एवं ऐसा करने के लिए बुलाए जाने पर राष्ट्रीय सेवाएं प्रदान करना। अधिवक्ता दीपक ने कहा कि यह कोई विवाद नहीं है ना ही यहां दो पक्षकार है जो मामले का निष्कर्ष निकलेगा और जो बीत गया है उसपर बड़ा चढ़ा कर फिल्म बना कर राजनीति कर उस पर अपनी सत्ता की रोटियां सेकना, इसमें सिर्फ उन राजनेताओं का भला है नाकि राष्ट्र की जनता का।


    अधिवक्ता दीपक सिंह ने कहा कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस फिल्म को टैक्सफ्री कर दिया है उनसे मेरा यह सवाल है कि क्या सरकार ने ऐसी कोई फिल्म टैक्सफ्री की है जिससे आज के युवाओं को कोई प्रेरणा मिल सके जो शिक्षा संबंधी हो, मोटिवेशनल हो जबकि वर्तमान में हमारे समाज को मोटिवेशन की बहुत जरूरत है यह  सिर्फ दो धर्मों के विवाद की फिल्म को ही आधार बना कर उसको टैक्स फ्री करना लोकहित में नहीं है वहीँ बीजेपी नेता ने यह फिल्म 100 छात्राओं को मुफ्त में दिखाई है क्या फिल्म दिखाना ही लोक कल्याण है? इससे भलाई हो या न हो बुराई और दो धर्मों में मन मुटाव जरूर होगा और लोगो में भाईचारे की भावना को समाप्त करने की यह कोशिश राष्ट्र हित में नहीं है।आखिर क्यों कहा गया है की हिंदू-मुस्लिम ,सिख, ईसाई आपस में है भाई भाई क्योंकि हमारा देश धर्मनिरपेक्ष देश है कट्टर होना राष्ट्र हित में नहीं हो सकता इससे इससे राष्ट्र में शांति व्यवस्था भंग और लोगों में मनमोटाव उत्पन्न हो रहा है जो राष्ट्र के लिए नुकसान दायक है।


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